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Roopkund lake Uttarakhand: उत्तराखंड में है भारत की सबसे रहस्यमयी झील, जिसमें मिले हैं सैकड़ों मानव कंकाल

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Roopkund Lake Uttarakhand: रूपकुंड झील एक ग्लेशियर झील है जो गढ़वाल हिमालय में 5,029 मीटर (16,499 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है। झील चारों ओर से ग्लेशियरों और बर्फ से ढकी चोटियों से घिरी है, जिनमें त्रिशूल और नंदा घुँटी शामिल हैं। रूपकुंड को 1942 में झील में पाए गए 600 से अधिक लोगों के कंकालों के लिए जाना जाता है।

झील में मिले कंकालों के बारे में कहा जाता है कि वे 9वीं शताब्दी में ओलों की चपेट में आने से मारे गए एक समूह के अवशेष हैं। हालांकि, कंकालों की उत्पत्ति के बारे में अन्य मान्यताएं भी हैं, जिनमें लोगों के युद्ध या धार्मिक बलिदान के शिकार होने की संभावना शामिल है। रूपकुंड झील के रहस्य दुनिया भर के लोगों में झील के प्रति जिज्ञासा पैदा कर रहा है। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम रूपकुंड झील और यहाँ मिले कंकालों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

रूपकुंड झील- फैक्ट- Roopkund Lake- Facts

जानकारीविवरण
नामरूपकुंड झील
स्थानउत्तराखंड के चमोली जिले में
ऊँचाई5,029 मीटर (16,499 फीट)
आकारव्यास में 150 मीटर (492 फीट)
गहराईअज्ञात
पानीसाफ और ठंडा
कंकालसैकड़ों कंकाल पाए गए हैं
कहानियांझील में कंकालों के आने के बारे में कई कहानियां हैं
चुनौतियांदूरस्थ और कठिन पहुँच
पर्यटनलोकप्रिय पर्यटन स्थल

रूपकुंड झील का इतिहास- Roopkund Lake History and Story

रूपकुंड झील के रहस्य
Image- Facebook

रुपकुंड झील का इतिहास (Roopkund History) बहुत ही रहस्यमय है। कोई नहीं जानता कि झील में कंकाल कैसे आए। कुछ लोगों का मानना ​​है कि वे एक लड़ाई में मारे गए थे, जबकि एक अन्य मान्यता के अनुसार ये कंकाल एक प्राकृतिक आपदा का शिकार हुए लोगों के हो सकते हैं।

रूपकुंड झील (Roopkund Jheel) का सबसे पहला ज्ञात उल्लेख 16वीं शताब्दी की एक पांडुलिपि में है। पांडुलिपि में रूपकुंड झील को एक पवित्र स्थान के रूप में वर्णित किया गया है और झील में भूत-प्रेतों के होने का भी उल्लेख मिलता है।

रुपकुंड झील, जिसे कंकाल झील (Lake Of Bones) के नाम से भी जाना जाता है, उत्तराखंड के चमोली जिले (Chamoli) में स्थित एक उच्च-ऊंचाई वाली हिमनद झील (Roopkund Glacier Lake) है। यह झील त्रिशूल नामक पर्वत पर स्थित है और सैकड़ों मानव कंकालों के लिए जानी जाती है, जो झील के तट पर पाए गए हैं। कंकालों को लेकर एक सामान्य मान्यता है कि ये सालों पहले एक रहस्यमय आपदा में मारे गए लोगों के हैं।

सबसे पहले, 1942 में एक ब्रिटिश वन दरोगा ने गस्त के दौरान इस झील के पास कंकालों की खोज की थी। तब से कई अन्य खोजकर्ताओं और वैज्ञानिकों ने कंकालों का अध्ययन किया है, लेकिन वे अभी भी यह नहीं जान पाए हैं कि वे किसके हैं और कैसे मरे।

रुपकुंड झील का इतिहास कई रहस्यों और किंवदंतियों से घिरा हुआ है। एक किंवदंती के अनुसार, झील में कंकाल एक राजा और उनकी सेना के हैं, जो एक प्राचीन युद्ध में मारे गए थे। एक अन्य किंवदंती के अनुसार, कंकाल एक धार्मिक अनुष्ठान के दौरान बलिदान किए गए लोगों के हैं।

रुपकुंड झील का रहस्य अभी भी अनसुलझा है। यह एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, और लोग झील के रहस्य को जानने और अनुभव करने के लिए आते हैं।

क्या हैं रूपकुंड झील के रहस्य- Roopkund Lake Mystery

रूपकुंड झील के रहस्य
Image Credit- Deepak Sharma

उत्तराखंड के चमोली जुले में स्थित यह रूपकुंड झील या कंकालों की झील अपने में बहुत सारे रहस्यों को छुपाये हुई है, रूपकुंड झील के रहस्य पता करने के लिए बहुत सारे वैज्ञानिक झील का अध्ययन यहाँ आये लेकिन अभी तक किसी को कोई खास सफलता नहीं मिली है। झील के बारे में अनेक मान्यताएं हैं, रूपकुंड झील के रहस्य को और अधिक पेचीदा बना देते हैं। यहाँ हम आपको सभी मान्यताओं के बारे में बताएँगे।

पहली मान्यता– एक मान्यता के अनुसार ये कंकाल तत्कालीन कन्नौज राजा यशोधवल और उनके सैनिकों के हैं। माना जाता है कि तेरहवी शताब्दी में राजा यहाँ अपने सैनिकों के साथ यात्रा पर आया था। ऊँचा हिमालयी क्षेत्र होने की वजह से यहाँ प्राकृतिक आपदाओं का होना सामान्य बात है, ऐसी ही एक आपदा के चपेट में आने से राजा और उसके सैनिकों मृत्यु हो गयी। पुराणी लोककथाओं में यह भी कहा जाता है की राजा ने अपने सैनिकों इस पवित्र क्षेत्र में कुछ वर्जित कार्य करवाए, जिस कारण उन्हें भारी आपदा का सामना करना पड़ा और वहीं उनकी मृत्यु हो गयी।

दूसरी मान्यता- कहीं-कहीं यह भी उल्लेख मिलता है कि राजा की कोई संतान न होने की वजह से राजा संतान प्राप्ति के लिए एक बार नंदा राजजात यात्रा पर यहाँ आया, बताते हैं की नंदा देवी के कुपित होने की वजह से यहाँ भयंकर ओलावृष्टि हुई, जिसकी चपेट में आने से राजा के सभी सैनिकों की मृत्यु हो गयी। यहाँ मिले कंकालों के सर पर बड़े-बड़े घाव देखे जा सकते हैं। कहते हैं की ये घाव ओलों की मार के हैं, इन ओलों का आकर एक क्रिकेट बॉल के बराबर बताया जाता है। उत्तराखंड में नन्दा राजजात यात्रा 12 वर्षों में एक बार होती है, इस यात्रा में भाग लेने के लिए देश-विदेशों से अनेक लोग आते हैं।

तीसरी मान्यता- एक अन्य मान्यता के अनुसार रूपकुंड झील में मिले कंकाल सन 1842 में हुए इंडो-तिब्बत युद्ध के समय के हैं। माना जाता है कि जब युद्ध चल रहा था तो कुछ सैनिक यहाँ फंस गए और उनकी मृत्यु हो गयी, 1942 में जब एक ब्रिटिश वन अधिकारी ने इस झील की खोज की तो उसके बाद कहा गया कि ये कंकाल द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मरे जापानी सैनिक है लेकिन बाद में हुई शोध से पता चला की ये कंकाल उस से भी पुराने हैं।

चौथी मान्यता- एक मान्यता के अनुसार इस झील में मिले कंकाल उन लोगों के हो सकते हैं, जिन्हें एक धार्मिक बलिदान के लिए मार दिया गया था। लेकिन ये कंकाल पूरी झील में फैली हुई हैं न कि एक जगह पर हैं, ऐसे में बहुत से लोग इस मान्यता को गलत बताते हैं।

इन सभी मान्यताओं के अतिरिक्त झील के बारे में अन्य मान्यताएं और कहानियां भी प्रचलित हैं, जो अपने आप ने रूपकुंड झील के रहस्यों को समाये हुए है। अनेक वैज्ञानिकों द्वारा रूपकुंड झील के रहस्य का पता लगाने के लिए शोध किये गए हैं।

रूपकुंड झील पर किये गए शोध- Roopkund Lake Studies

शोध 1: 1950 के दशक में ब्रिटिश शोधकर्ताओं ने सबसे पहले रूपकुंड झील का अध्ययन किया और अपने शोध में बताया ये कंकाल 650 साल पुराने हैं।

शोध 2: 1955 में सर्वे ऑफ़ इंडिया के मानव विभाग ने शोध किये और बताया कि ये कंकाल लगभग 700 साल पुराने हैं। यहाँ मिले कंकालों के सिर पर मिले घावों को देखकर यह बताया जा सकता है की इनकी मृत्यु सिर पर लगी किसी भारी चोट से हुई होगी।

शोध 3: साल 2004 में यूरोपियन और भारतीय वैज्ञानिकों की एक टीम ने यहाँ मिले कंकालों और मानव अवशेषों के कार्बन डेटिंग की और पता लगाया की ये कंकाल 850 AD के हैं। इस अध्ययन में भी बताया गया कि कंकालों के खोपड़ी पर पड़े निशानों से पता चलता है कि इन पर पीछे से किसी भारी चीज से मारा गया होगा या फिर इनकी मौत का कारण भारी ओलावृष्टि हो सकता है।

शोध 4: हाल ही में हुई एक शोध में बताया गया है कि ये यहाँ मौजूद कंकाल 2 अलग-अलग समूहों के हैं, और ये दोनों समूह आनुवांशिक तौर पर एक दुसरे से बिलकुल अलग हैं। इनकी मौत एक ही समय पर नहीं हुई होगी, बल्कि इनकी मौत में लगभग 1000 साल का अंतर है। इससे शोध के अनुसार यहाँ पर मिले कंकाल किसी ओलावृष्टि की वजह से नहीं मरे थे और नहीं यहाँ कोई हथियार मिले हैं, जिससे यह साबित होता है कि ये लोग किसी युद्ध में मरे होंगे। ऐसे में रूपकुंड झील का रहस्य अभी भी नहीं सुलझ पाया है।

झील का नाम रूपकुंड क्यों पड़ा- Roopkund Lake Name

मान्यता है कि एक बार जब भगवान शिव और माता पार्वती कैलाश पर्वत की ओर जा रहे थे तो माता पार्वती ने बागवान शिव से कहा की मुझे अपना रूप देखना है, तो शिव ने इस जगह पर अपने त्रिशूल से एक झील का निर्माण कर दिया। इस झील का जल इतना शुद्ध और स्वच्छ था की माता पार्वती इसमें खुद को एकदम स्पष्ट देख सकती थीं। इसी वजह से इस झील का नाम रूपकुंड झील रखा गया।

रूपकुंड झील ट्रेक- Roopkund Trek

रूपकुंड झील के रहस्य
Roopkund Lake Trek

रूपकुंड झील का ट्रेक भारत के सबसे कठिन ट्रेकों में से एक है, यह ट्रेक रूपकुंड से आगे नंदा देवी पर्वत तक जाता है।बता दें कि नंदा देवी पर्वत की ऊँचाई 7816 मीटर है, यह पर्वत उत्तराखंड का सबसे ऊँचा और भारत का दूसरा सबसे ऊँचा पर्वत है।

रूपकुंड झील और नंदा देवी के लिए ट्रेक चमोली में स्थित लोहाजंग के एक छोटे से गाँव से शुरू होता है, ट्रेक लगभग 30-40 km लम्बा है यहाँ पहुँचने में लगभग 7-8 दिन लगते हैं।

12 वर्षों में होती है नंदादेवी राजजात यात्रा- Nanda Devi Raj jat Yatra

उत्तराखंड के लोगों में देवी-देवताओं के प्रति बहुत ही आस्था और विश्वास होता है, उतराखंड में देवताओं का वास माना जाता है और यहाँ सभी देवी-देवताओं के मंदिर देखने को मिलते हैं, यही कारण है कि उत्तराखंड को देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर बहुत ऊँचाई पर स्थित होने की वजह से यहाँ पहुँचने के लिए लम्बी यात्राएं करनी पढ़ती हैं। ऐसी ही एक यात्रा नंदादेवी राजजात यात्रा है, यह यात्रा गढ़वाल हिमालय की प्रमुख देवी, नंदा देवी की पूजा करने के लिए की जाती है। गढ़वाल क्षेत्र में माता पार्वती को ही नंदा देवी कहा जाता है।

यह यात्रा हर 12 साल में एक बार होती है। नंदादेवी यात्रा उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित लोहाजंग क्षेत्र के नौटी गांव से शुरू होती है और होमकुंड में समाप्त होती है। यात्रा में बहुत लम्बी होने के कारण 1 या 2 दिन में पूरी नहीं की जा सकती है इसलिए यात्रा के लिये अलग-अलग पढ़ाव निर्धारित किये जाते हैं। यात्रा के मुख्य पड़ाव हैं- ईड़ाबधाणी, नौटी, कांसुवा, सेम, कोटि, भगोती, कुल्सारी, नंद्केशरी, मुन्दोली, वाण, वेदनी, होमकुंड।

रूपकुंड झील कैसे पहुंचे?- How To Reach Roopkund Lake

रूपकुंड झील के रहस्य

रूपकुंड झील का ट्रेक लोहाजंग से शुरू होता है, लोहाजंग पहुँचने के लिए आपको सबसे पहले हरिद्वार-ऋषिकेश पहुंचना होगा और वहां से काठगोदाम। काठगोदाम तक का सफर आप रानीखेत एक्सप्रेस ट्रेन से कर सकते हैं।

दिन 1: काठगोदाम से लोहागजं (10-15 km) का सफ़र आपको पब्लिक ट्रासपोर्ट से करना होगा। यदि आप एक समूह में हैं तो लोहागंज के लिए टैक्सी बुक करना सबसे सही विकल्प रहेगा और यदि आप कम लोग हैं और पैंसे बचाना चाहते हैं तो आप बस (Bus) से जा सकते हैं। लोहागंज में रहने और खाने की प्रयाप्त व्यवस्थाएं उपलब्ध हैं।

दिन 2: दूसरे दिन आपको सुबह जल्दी उठकर डिंडा गाँव तक 6.5 km का सफ़र तय करना है। यह ट्रेक अधिकतर जंगल से होकर जाता है और यात्रा का एक अलग अनुभव प्रदान करता है।

दिन 3: तीसरे दिन का सफ़र डिंडा गाँव से आपको औली बुग्याल ताल लेकर जायेगा, यह 10.5 km का ट्रेक है। ट्रेक लम्बा है तो आपको सुबह जल्दी उठाना होगा और जल्दी-जल्दी अपने अगले पढ़ाव तक पहुंचना होगा, तभी आप इस क्षेत्र की सुन्दरता का अनुभव कर पाएंगे। बाँझ के पेड़ों का यह जंगल आपको तोलापनी और तोल्कान जैसे सुन्दर स्थानों से होते हुए औली बुग्याल पहुंचाता है।

दिन 4: अगले दिन की यात्रा औली बुग्याल से पतर नाचुनी (Patar Nachuni) तक होगी। यह ट्रेक 7.5 km का बहुत ही आसान ट्रेक है इसमें ज्यादा चढाई नहीं है बल्कि सीधा-सीधा ही रास्ता है। यहाँ पहुँचने के लिए बेदनी बुग्याल और घोरा लौतनी से जाना होता है, ये दोनों ही जगह से ही आस-पास के बहुत ही सुन्दर नज़ारे देखने को मिलते हैं।

दिन 5: अगले दिन 4 km का ट्रेक है जो Patar Nachuni से Bhagwabasa (भाग्वाबासा) तक का है। यह स्थान रूपकुंड झील से केवल 3 km की दूरी पर है।

दिन 6: भग्वाबासा से रूपकुंड झील का ट्रेक 3 km का है, आप सुबह 4 बजे उठ कर आगे की यात्रा कर सकते हैं। रूपकुंड झील तक पहुँचने में आपको 3 घंटे लग जायेंगे। झील के सुन्दर नजारों का आनंद लेने के बाद आप थोड़ी ही दूरी पर स्थित जुनारगाली हिल पर जरुर जायें, यहाँ पहुँचने में 30 मिनट लगते हैं।

अब आप जल्दी ही नीचे आने की यात्रा शुरू कर सकते हैं और भग्वाबासा होते हुए बेदनी बुग्याल पहुँच सकते हैं। नीचे आते समय हर कदम ध्यान से रखें, बर्फ में पैर फिसलने का खतरा हो सकता है।

दिन 7: अगले दिन बेदनी बुग्याल से patar Nachuni होते हुए लोहाजंग तक पहुँच सकते हैं।

दिन 8: आठवें दिन में आप लोहाजंग से काठगोदाम वापस आयेंगे।

उत्तरखंड की लोककथाओं में उल्लेख मिलता है की जब भगवान शिव और माता पार्वती(माँ नंदा) इस रास्ते से होकर कैलाश पर्वत की ओर जा रहे थे तो माता पार्वती ने भगवान शिव के कहा की मुझे अपना रूप देखना है तो शिव ने अपने त्रिशूल से इस जगह पर एक झील का निर्माण किया, इस झील का जल एकदम स्वच्छ और निर्मल था। जहाँ माँ पार्वती अपना रूप स्पष्ट देख सकती थीं। इसी वजह से इस झील का नाम रूपकुंड झील पड़ा।

रूपकुंड झील जाने का सबसे अच्छा समय- Best Time To Visit

रूपकुंड झील साल के अधिकतर महीने बर्फ से ढकी रहती है, केवल अगस्त-सितम्बर में बर्फ कम होती है और झील में पानी दिखाई देता है।बर्फ पिघलने से इस झील में मौजूद सभी नर कंकाल देखे जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त नंदा देवी राजजात यात्रा में बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। यात्रा रूपकुंड झील से ही होते हुए जाती है।

FAQs

Q- रूपकुंड झील की खोज सर्वप्रथम किसने की थी?

Ans- रूपकुंड झील की खोज सर्वप्रथम 1942 में ब्रिटिश वन अधिकारी द्वारा एक गस्त के दौरान की गयी थी।

Q- रूपकुंड में मिले नर कंकालों की ऊंचाई कितनी है?

Ans- रूपकुंड झील में मिले नरकंकाल सामान्य मनुष्यों की कद-काठी से लम्बे हैं, इन नरकंकालों की औसत ऊँचाई 8 से 10 फीट है।

Q- रूपकुंड झील के अन्य नाम क्या-क्या हैं?

Ans- रूपकुंड झील को रहस्यमयी झील, कंकालों की झील आदि नामों से भी जाना जाता है।

Q- रूपकुंड झील कहाँ स्थित है?

Ans- रूपकुंड झील उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित है।

Q- रूपकुंड झील की ऊंचाई कितनी है?

Ans- रूपकुंड झील गढ़वाल हिमालय में समुद्रतल से 5,029 मीटर (16,499 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है।

Q- रूपकुंड झील किसलिए जानी जाती है?

Ans- रूपकुंड झील में सैकड़ों की संख्या में नरकंकाल मिले हैं, ये कंकाल अभी भी झील में देखे जा सकते हैं, इन कंकालों पर अब तक अनेक अध्ययन हो चुके हैं लेकिन झील का रहस्य अभी भी नहीं सुलझ पाया है।

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