बद्रीनाथ मंदिर इतिहास, कहानी, कपाट खुलने की तिथि, बद्रीनाथ कैसे पहुंचें, जाने का सबसे अच्छा समय, (Badrinath Temple History, Story, Badrinath Dham Yatra 2024, How to reach Badrinath, Badrinath dham aarti, Badrinath Temple opening date 2024, Badrinath temple information, Badrinath temple all details, Architecture, Built by, Rawal Pandit.
चार धाम यात्रा 2024 महत्वपूर्ण तिथियाँ- Char Dham Yatra Opening Dates
Temple | Opening Dates | Closing Dates |
Gangotri | 10 May 2024 | – |
Yamunotri | 10 May 2024 | – |
Kedarnath | 10 May 2024 | – |
Badrinath | 12 May 2024 | – |
उत्तराखंड के चमोली जिले और अलकनंदा नदी के तट पर बसा हुआ यह मंदिर हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। बद्रीनाथ मंदिर या बद्रीनाथ धाम हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु को समर्पित है और उत्तराखंड तथा भारत में स्थित चार धामों में से एक है। बद्रीनाथ धाम (Badrinath Yatra 2024) में हर वर्ष लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान विष्णु के दर्शन करने यहां आते हैं।
चार धाम यात्रा (Char धाम यात्रा 2024) 10 मई 2024 से शुरू होगी और इसके लिए रजिस्ट्रेशन मार्च के अंत में या अप्रैल में शुरू हो जायेंगे। केदारनाथ धाम (Kedarnath Yatra 2024) के कपाट 10 मई और बद्रीनाथ धाम के कपाट 12 मई को सभी श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जायेंगे. जबकि गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट हर साल अक्षय तृतीया के दिन खुलते हैं, जो इस बार 10 मई को आ रही है.
आज हम आपको बद्रीनाथ के इतिहास की सभी जानकारी देने वाले हैं। और इसी के साथ-साथ बद्रीनाथ धाम (Badrinath Dham) से जुड़े रहस्यों के बारे में भी बताएंगे। (All Image Credit- Pixabay)
बद्रीनाथ मंदिर की पौराणिक कहानी- Badrinath Temple Story
पहली कहानी
बद्रीनाथ मंदिर के इतिहास (Badrinath Dham History) और बद्रीनाथ मंदिर में बद्रीनारायण की अवस्थिति को लेकर बहुत सारी कहानियां और मान्यताएँ प्रचलित हैं। एक मान्यता के अनुसार वर्तमान मंदिर के आस पास के पूरे क्षेत्र को प्राचीन समय में केदारखंड (शिव भूमि) कहा जाता था। जब गंगा नदी का धरती पर अवतरण हुआ तो माँ गंगा 12 अलग-अलग धाराओं में बहने लगी। बद्रीनाथ मंदिर (Badrinath Temple) वाले स्थान के पास से जो धारा बही वो आगे चलकर अलकनंदा नदी (Alaknanda River) के नाम से जानी जाने लगी। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान विष्णु ध्यानयोग करने के लिए उचित स्थान ढूंढ रहे थे तब वे अलकनंदा के समीप आ पहुंचे और उन्हें ये जगह बहुत ही मनमोहक और ध्यान करने के लिए उचित लगी।
इस जगह को पाने के लिए भगवान विष्णु ने नीलकंठ पर्वत (Neelkanth Mountain) के समीप एक बालक का रूप धारण किया और रोने लगे। बालक की आवाज सुनकर माँ पार्वती उनके समक्ष आती हैं और बालक को चुप कराने का प्रयास करती हैं। तब बालक रूपी भगवान विष्णु ने अपने ध्यानयोग के लिए अलकनंदा के समीप की जगह मांग ली। वर्तमान समय में इसी पवित्र स्थल को बद्रीविशाल के नाम से जाना जाता है।
दूसरी कहानी
विष्णु पुराण (Vishnu Puran) में उल्लेखित एक कथा के अनुसार धर्म के दो पुत्र नर और नारायण थे। नर और नारायण दोनों ने बहुत वर्षों तक धर्म का विस्तार करने के लिए इस स्थान पर तपस्या की।
नर और नारायण अपने आश्रम को स्थापित करने के लिए एक उचित स्थान की तलाश कर रहे थे, एक आदर्श स्थान की तलाश में दोनों वृद्ध बद्री, योग बद्री, ध्यान बद्री, भविष्य बद्री इन चार जगहों पर गए, अन्ततः उन्हें अलकनंदा नदी के पिछले क्षेत्र में एक ठंडे पानी का और एक गर्म पानी का चश्मा (जमीन में पड़ी ऐसी दरार जहां से भूमिगत जल निरंतर बहता हो) मिला। इसके नजदीक के क्षेत्र को उनके द्वारा बद्रीविशाल (Badrivishal) नाम दिया गया।
एक मान्यता के अनुसार माना जाता है कि वेद व्यास जी ने इसी स्थान पर महाभारत पुस्तक की रचना की थी। और यही नर-नारायण अगले जन्म में अर्जुन और कृष्ण के रूप में जन्म लेते हैं।
बद्रीनाथ धाम का इतिहास- Badrinath Temple History
बद्रीनाथ धाम की उत्त्पत्ति और इतिहास (Badrinath Temple History) के विषय में किसी में भी एकमत नहीं हैं। सभी अलग-अलग मान्यताओं के आधार पर बद्रीनाथ धाम की उत्पत्ति बताते हैं।
- एक मान्यता प्रचलित है की जो आज का बद्रीनाथ धाम हम देखते हैं वह कभी एक बौद्ध मठ रहा होगा क्योंकि मंदिर की बनावट बहुत हद तक बौद्ध मठ से मिलती है। कहा जाता है कि इस बौद्ध मठ को आदि गुरु शंकराचार्य जी महाराज ने हिन्दू मंदिर में परिवर्तित कर दिया।
- हिन्दू धर्म के अनुयायियों में एक और मान्यता प्रचलित है कि बद्रीनाथ धाम में बद्रीनाथ मूर्ति को देवताओं द्वारा स्वयं स्थापित किया गया था लेकिन बाद में जब बौद्ध धर्म ज्यादा प्रचलित हुआ तो बौद्ध अनुयायियों ने यहां स्थापित मूर्तियों को अलकनंदा नदी में फेंक दिया। बाद में 814-820 ईसा पूर्व जब शंकराचार्य ने यहां 6 वर्षों तक निवास किया तो उन्होंने अलकनंदा नदी से बद्रीनाथ/बद्रीनारायण की मूर्ति को खोज निकाला और इन्हें तप्त कुंड के समीप पुनः स्थापित किया।
- ये भी माना जाता है कि शंकराचार्य के द्वारा इन मूर्तियों को पुनः स्थापित किये जाने के बाद फिर से ये मूर्तियाँ यहां से स्थानांतरित हो गयीं और फिर तीसरी बार रामानुजाचार्य द्वारा बद्रीनाथ की मूर्ति को तप्त कुंड से निकालकर पुनः स्थापित किया।
- बद्रीनाथ मन्दिर के इतिहास (Badrinath Temple History) को लेकर अनेक मान्यताओं के साथ-साथ एक पौराणिक कथा भी प्रचलित है, जिसमें शंकराचार्य द्वारा गढ़वाल के तत्कालीन राजा की मदद से इस क्षेत्र के सभी बौद्धों को यहां से भागने पर मजबूर कर दिया और तब से गढवाल राजाओं ने मंदिर की प्रबंध व्यवस्था संभाली।
- इस पौराणिक कथा के अनुसार आदि गुरु शंकराचार्य जी ने गढ़वाल क्षेत्र के तत्कालीन परमार वंश के राजा कनकपाल से मदद लेकर सभी बौद्ध भिक्षुओं को इस पूरे क्षेत्र से निष्कासित कर दिया। इसके बाद मन्दिर की बागडोर राजा कनकपाल और उसके उत्तराधिकारियों के हाथ में आ गयी। गढ़वाल के सभी राजाओं ने मंदिर की प्रबंध व्यवस्था सुचारू रूप से बनाये रखने के लिए अनेक प्रयास किये।
- गढ़वाल के तात्कालिक राजाओं ने मंदिर के प्रबंध खर्चों को चलाने के लिए अनेक गाँवों का एक समूह बनाया जिसे गूंठ कहा गया।
- मंदिर मार्ग में अनेक गाँव बसाए गए जिससे ज्यादा आय हो और इस आय का उपयोग मंदिर आने वाले तीर्थयात्रियों के रहने, खाने और ठहरने की व्यवस्था के लिए किया जाता था।
- गढ़वाल राजाओं ने मंदिर की प्रबंध व्यवस्था को सुचारू रूप से बनाये रखा और 16वीं शताब्दी में तात्कालिक शासक बद्रीनाथ मूर्ति को गुफा से लाकर वर्तमान मंदिर में स्थापित किया। और जब मंदिर बन गया तो इंदौर की महारानी अहिल्याबाई ने मंदिर में सोने की बानी कलश छतरी चढ़ाई थी। इसके बाद बीसवीं सदी में गढ़वाल क्षेत्र दो भागों में बंट गया और बद्रीनाथ मंदिर ब्रिटिश शासन के अन्तर्गत चला गया। इसके बावजूद भी मंदिर समिति का अध्यक्ष गढ़वाल का राजा ही होता था और मंदिर प्रबंधन को देखता था।
बद्रीनाथ मंदिर पुनर्निर्माण/जीर्णोद्धार- Badrinath Temple Reconstruction
बद्रीनाथ मंदिर ऊंचे हिमालयी क्षेत्रों में अवस्थित है और यहां समय-समय पर प्रकृति अपना विनाशकारी रूप धारण करती रहती है। ऐसी स्थिति में बद्रीनाथ धाम को भी अनेकों बार काफी क्षति पहुंची है और हर बार मंदिर का जीर्णोद्धार/नवीनीकरण किया गया।
- सर्वप्रथम 17वीं शताब्दी में गढ़वाल के तात्कालिक राजाओं द्वारा मंदिर को विस्तारित किया गया और मंदिर को एक नया रूप दिया।
- 1803 में आये भीषण भूकम्प से इस हिमालयी क्षेत्र में बहुत विनाश हुआ और मंदिर को भी बहुत क्षति पहुंची। इस क्षतिपूर्ति के लिए जयपुर, राजस्थान के तत्कालीन राजा ने मंदिर का नवीनीकरण करवाया।
- समय-समय पर अनेकों राजाओं ने मंदिर में दान किया जाता था और अनेक ग्रामों से राजस्व की प्राप्ति भी होती थी।
- कुछ समय बाद मंदिर परिसर के आस पास के छोटा नगर भी बस गया जहां उस समय तक केवल मंदिर कर्मचारी रहते थे। इसी के साथ आस-पास के क्षेत्र में अतिक्रमण गतिविधियां भी तेज होने लगी। अंततः राज्य सरकार ने 2006 में अतिक्रमण पर रोक लगाने के लिए मंदिर के आस-पास के क्षेत्र को No Construction zone घोषित कर दिया।
बद्रीनाथ मंदिर स्थापत्य कला- Badrinath Temple Architecture
बद्रीनाथ धाम, अलकनंदा के समीप स्थित है। मंदिर की बनावट बौद्ध मठ की भांति है। मंदिर के प्रवेशद्वार तक जाने के लिए चौड़ी सीढ़ियां हैं। मंदिर का प्रवेशद्वार और खिड़कियां धनुष की आकृति में हैं। बद्रीनाथ धाम के इस विशाल प्रवेशद्वार को सिंहद्वार कहा जाता है। प्रवेशद्वार के ठीक ऊपर शीर्ष पर तीन सोने के कलश सुशोभित किये गए हैं, जिनसे इस द्वार की शोभा और बढ़ जाती है। पूरे मंदिर पर वास्तुकारों द्वारा बहुत सुंदर कलाकृतियों की नक्कासी की है।
मंदिर के अंदर एक गर्भ गृह(Garbha Griha), एक दर्शन मंडप (Mandap) और एक सभा मंडप है। एक मंदिर का सबसे महत्वपूर्ण स्थान गर्भ गृह होता है। दर्शन मंडप में तीर्थयात्री बैठकर पूजा पाठ करते हैं। सभा मंडप में रावल, पुरोहित, पुजारियों आदि में बैठने की जगह होती है। मंदिर में गर्भ गृह की छत 41 फ़ीट लंबी और शंकुधारी है।
- गर्भ गृह मे स्थापित शालिग्राम की बनी बद्रीनारायण की मूर्ति 1 मीटर लंबी है। मूर्ति में भगवान के चार हाथ दिखाए गए हैं। दो हाथ योगमुद्रा में हैं और दो हाथ ऊपर की ओर हैं जिनमे भगवान बद्रीनारायण एक हाथ में शंक और दूसरे हाथ में चक्र धारण किये हुए हैं।
- गर्भ गृह में बद्रीनारायण की मूर्ति के अतिरिक्त धन के देवता कुबेर, नारद मुनि, नर और नारायण और उद्धव आदि देवताओं की मूर्तियों को भी स्थापित किया गया है।
- मंदिर के चारों ओर अन्य 15 मूर्तियां स्थापित की गयी हैं जिनकी निरंतर पूजा की जाती है। इन मूर्तियों में देवी लक्ष्मी, गरुड़ और नवदुर्गा की मूर्तियां सम्मिलित हैं।
वैदिक ग्रंथों में बद्रीनाथ धाम का उल्लेख- Badrinath Dham Vaidik Granth
बद्रीनाथ धाम के इतिहास (Badrinath Temple History) का उल्लेख अनेक ग्रंथों में किया गया है, लेकिन मुख्य रूप से बद्रीनाथ मंदिर का उल्लेख हमें स्कन्द पुराण, महाभारत और विष्णु पुराण में देखने को मिलता है। स्कन्द पुराण में कहा गया है की बद्रीनाथ धाम जैसा तीर्थ स्थल न तो स्वर्ग, न ही पृथ्वी और न ही नरक में स्थित है। भागवत पुराण में कहा गया है की भगवान विष्णु सभी सजीव प्राणियों का उद्धार करने के लिए नर तथा नारायण के रूप में बद्रिकाश्रम में अनंत काल से तपस्या कर रहे हैं।
बद्रीनाथ मंदिर के रावल पंडित/पुरोहित- Badrinath Temple Rawal Pandit/Purohit
बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु की पूजा करने वाले मुख्य पुरोहित या पुजारी को “रावल(Rawal)” कहा जाता है। ये रावल केरल से आते हैं और रावलों के दिशा निर्देशन में मंदिर के सभी कार्यक्रम संपन्न होते हैं।
बद्रीनाथ धाम में आरती- Badrinath Dham Aarti
बद्रीनाथ धाम में सुबह-शाम दोनों समय आरती होती है। प्रातःकाल में भगवान विष्णु का महाभिषेक, अभिषेक, गीतापाठ और भागवत पूजा होती है। जबकि शाम के समय होने वाली धार्मिक गतिविधियों में गीत गोविंद और आरती शामिल होती है।
चार धाम यात्रा ट्रेन 2024- Char Dham Yatra Train 2024
पूरी तरह ट्रेन से चार धाम यात्रा करने के लिए अभी चार धाम यात्रा रेल परियोजना(Char Dham Yatra Rail Pariyojana) पर काम चल रहा है। लगभग 2025-26 तक काम पूरा हो जाएगा। लेकिन वर्तमान समय में आपको ऋषिकेश या हरिद्वार तक ही ट्रेन की सुविधाएं उपलब्ध हैं। आप भारत में अधिकांश बड़े शहरों से हरिद्वार-ऋषिकेश के लिए ट्रेन सेवा का लाभ उठा सकते हैं। हरिद्वार-ऋषिकेश से आपको बस, टैक्सी या कार से चार धाम यात्रा करनी होगी। अधिकतर यात्री बस से यात्रा करना पसंद करते हैं। क्योंकि बस का किराया टैक्सी और कार की तुलना में कम होता है।
कैसे पहुंचे बद्रीनाथ धाम- How to reach Badrinath temple
बद्रीनाथ मंदिर पहुँचने के तीन रास्तों का प्रयोग कर सकते हैं। आप रानीखेत के कर्णप्रयाग तक पहुँच सकते हैं या फिर आप दो अन्य रास्तों हरिद्वार– ऋषिकेश- देवप्रयाग – श्रीनगर – रुद्रप्राग – कर्णप्रयाग और फिर बद्रीनाथ धाम पंहुच सकते हैं। इसके अलावा आप कोटद्वार के रास्ते पौड़ी गढ़वाल से होते हुए आ सकते हैं।
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FAQ
Q. बद्रीनाथ धाम के कपाट कब खुलेंगे?
Ans- बद्रीनाथ धाम के कपाट 12 May 2024 को खुलेंगे।
Q. बद्रीनाथ धाम में किस भगवान की पूजा की जाती है?
Ans- बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। बद्रीनाथ उत्तराखंड में स्थित चार पवित्र धामों में से एक है।
Q. बद्रीनाथ धाम तक कैसे पहुंचे?
Ans- बद्रीनाथ धाम पहुंचने के लिए आप तीन रास्तों का प्रयोग कर सकते हैं। पहला रानीखेत होते हुए, दूसरा हरिद्वार से देवप्रयाग होते हुए और तीसरा कोटद्वार पौड़ी होकर के। ये तीनों रास्ते कर्णप्रयाग में आकर मिलते हैं
Q. बद्रीनाथ धाम के नजदीक कौन सा शहर है?
Ans- बद्रीनाथ धाम के नजदीक जोशीमठ, नंदप्रयाग, कर्णप्रयाग, पीपलकोटी, गौचर, विष्णुप्रयाग आदि अनेक शहर हैं जहां आप यात्रा के दौरान घूम सकते हैं।
Q. क्या हम बिना रजिस्ट्रेशन के बद्रीनाथ यात्रा कर सकते हैं?
Ans- नहीं, सरकार द्वारा चार धाम यात्रा 2024 के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया है। आप ऑनलाइन या ऑफलाइन दोनों तरीकों से रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं।
Q. बद्रीनाथ मंदिर कितने दिनों तक खुला रहता है?
Ans- बद्रीनाथ धाम के कपाट अप्रैल-नवंबर के बीच 6 महीने तक खुले रहते हैं।