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उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित यह हरियाली देवी मंदिर, भारत के 58 सिद्धपीठों में से एक है। हरियाली देवी मंदिर (Hariyali Devi Mandir) रुद्रप्रयाग से 37 km दूर जसोली गाँव में स्थित है, हरियाली देवी के इस मंदिर में देवी की शेर पर सवार एक श्वेत मूर्ती है। मंदिर में हरियाली देवी के साथ-साथ क्षेत्रपाल और हीत देवी की मूर्ती भी स्थापित की गयी है।
हरियाली देवी के बारे में खास बात यह है धनतेरस के दिन जसोली गाँव से हरियाली कांठा (Hariyali Kantha Yatra) के लिए देवी की यात्रा निकाली जाती है, यह यात्रा रात में ही निकलती है और इसमें केवल पुरुष ही भाग लेते हैं। मंदिर में दीवाली के समय दो दिन का और कृष्ण जन्माष्टमी के समय तीन दिन का मेला आयोजित किया जाता है। आज के आर्टिकल में हम समुद्रतल से 1400 मीटर ऊँचाई पर पर स्थित Hariyali Devi Temple की विस्तार से चर्चा करेंगे।
हरियाली देवी मंदिर-फैक्ट (Hariyali Devi Mandir Fact)
देवी | हरियाली देवी (बाला देवी, वैष्णो देवी) |
लोकेशन | जसोली, नग्रासु रुद्रप्रयाग |
दर्शन समय | 6:00 am – 7:00 pm |
प्रवेश शुल्क | कोई शुल्क नहीं |
त्यौहार | दीपावली, कृष्ण जन्माष्टमी |
जाने का सबसे अच्छा समय | सितम्बर से जून |
कैसे पहुंचें | बस, टैक्सी, कार (ऋषिकेश से आगे कोई ट्रेन नहीं) |
नजदीकी रेलवे स्टेशन | ऋषिकेश (153 km) |
नजदीकी एअरपोर्ट | जॉलीग्रांट एअरपोर्ट, देहरादून (170 km) |
हरियाली देवी मंदिर का इतिहास/महत्व (Hariyali Devi Temple history/significance)
हिन्दू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार हरियाली देवी मंदिर (Hariyali Devi Temple) के इतिहास को द्वापर युग से जोड़ा जाता है, मान्यता है की जब भगवान कृष्ण के अत्याचारी मामा कंस को पता लगा की उसकी मृत्यु अपने ही भांजे के हाथों होगी तो कंस ने अपनी बहन देवकी को कालकोठरी में बंद कर दिया और एक के बाद एक अपनी बहन के 7 पुत्रों को जन्म के तुरंत बाद जमीन पर पटख कर उनकी हत्या कर दी।
जब भगवान कृष्ण ने मथुरा में देवकी के 8 वें पुत्र के रूप में जन्म लिया तो उसी समय गोकुल में नन्द और यशोदा के घर योगमाया ने उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसके बाद भगवान की इच्छानुसार कृष्ण और योगमाया की अदला-बदली हुई। कृष्ण के पिता वासुदेव कृष्ण को गोकुल ले गए और योगमाया को मथुरा ले आये।
जब अगली सुबह कंस को पता लगा की देवकी ने एक बच्ची को जन्म दिया तो उसने अन्य बच्चों की भांति ही उस बच्ची को मारने के लिए उसे जमीन पर पटख दिया। माना जाता है की उस बच्ची के शरीर के टुकड़े देश के अलग-अलग जगहों पर पड़े और उन्ही स्थानों पर माता के सिद्धपीठों की स्थापना की गयी। बच्ची के शरीर का एक हिस्सा (जांघ) रुद्रप्रयाग स्थित हरियाली कांठा में गिरा और वहां मंदिर बन गया। कुछ अन्य कथाकारों की मानें तो जब कंस ने बच्ची को मारने का प्रयास किय तो वह कंस के हाथ से गायब हो गयी और हरियाली कांठा में प्रकट हुई।
हरियाली देवी मंदिर कहानी (Hariyali Devi Mystery/Story)
हरियाली देवी मंदिर रुद्रप्रयाग (Hariyali Devi Temple) की खोज सबसे पहले पाबो गाँव के लोगों ने की थी, मान्यता है कि जब हरियाली कांठा में देवी प्रकट हुई तो एक गाय हमेशा अपना दूध जंगल में खाली करके आती थी, एक दिन गाँव वालों ने गाय का पीछा करने की योजना बनायीं। जब गाय हरी पर्वत पहुंची तो गाँव वालों ने देखा की गाय अपना दूध इस पर्वत पर चढ़ा रही थी। तब पाबो गाँव के निवासियों ने हरी पर्वत पर एक मंदिर स्थापित किया, मंदिर हरी पर्वत पर होने की वजह से मंदिर को हरियाली देवी मंदिर (Hariyali Devi Mandir) के नाम से जाना जाने लगा।
हरी कांठा पर्वत तक जाने का रास्ता काफी दुर्गन होने की वजह से यहाँ प्रतिदिन पूजा करना संभव नहीं था। इसके बाद जसोली गाँव में एक मंदिर स्थापित करने का निर्णय लिया गया और इस मंदिर में माँ हरियाली देवी के साथ-साथ क्षेत्रपाल देवता और हीत देवी की मूर्तियाँ भी स्थापित की गयी।
हरियाली कांठा यात्रा (Hariyali Devi Temple yatra)
माँ हरियाली देवी को बाला देवी और वैष्णो देवी के रूप में भी पूजा जाता है। यह यात्रा दिवाली से पहले धनतेरस के दिन निकाली जाती है, इस यात्रा में हरियाली देवी की डोली को जसोली गाँव में स्थित मंदिर से हरियाली कांठा मुख्य मंदिर तक ले जाया जाता है। हरियाली कांठा यात्रा, जसोली गाँव से लगभग 10 km की यात्रा है। धनतेरस के दिन इस यात्रा में शामिल होने के लिए देश भर से हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ जाती है।
हरियाली देवी कांठा यात्रा उत्तराखंड की अनोखी यात्राओं में से एक है, यह यात्रा अन्य यात्राओं से भिन्न है। हरियाली कांठा यात्रा दिन के समय न निकलकर रात को निकाली जाती है और सुबह के समय अपने गंतव्य स्थान हरियाली कांठा मुख्य मंदिर पहुँचती है। यात्रा शुरू होने से पहले जसोली गाँव की स्थानीय महिलाएं मंगल गीत गाती हैं और ढोल-दमाऊं और शंख की ध्वनि के साथ यात्रा का सुभारम्भ किया जाता है। इस यात्रा को चार चरणों में संपन्न किया जाता है।
चरण 1: जसोली गाँव से यात्रा आगे बढ़कर कोदिमा गाँव में विश्राम के लिए रूकती है, यहाँ के निवासियों द्वारा यात्रा का स्वागत सत्कार किया जाता है और यात्रियों के जलपान की व्यवस्था की जाती है। आधा विश्राम करने के बाद यात्रा अपने अगले पड़ाव के लिए आगे बढती है।
चरण 2: कोदिमा से आगे बढ़कर यात्रा 3 km दूरी तय करने के बाद यात्रा अपने दूसरे पढ़ाव बांसों गाँव में पहुँचती है। यहाँ पर यात्रा 10 बजे के करीब-करीब पहुँचती है और एक लम्बा विश्राम करने के बाद अपनी आगे की यात्रा के लिए प्रस्थान करते हैं।
चरण 3: यात्रा आगे बढ़ते हुए बांसों गाँव से 2 km की दूरी पर स्थित पांचरंग्य पानी में रूकती है, यहाँ पर ताजे पानी के एक श्रोत से देवी का स्नान करवाया जाता है और इसके बाद यात्रा में शामिल सभी श्रद्धालु भी यहाँ स्नान करते हैं और फिर आगे की और बढ़ते हैं।
चरण 4: यहाँ से आगे बढ़ते हुए हरियाली कांठा यात्रा (Hariyali kantha Yatra) करीब 4 बजे 1.5 km की दूरी पर स्थित अपने अगले पढ़ाव कनखल पहुँचती है, यहाँ पर एक घंटे आराम करने के बाद यात्रा अपने अंतिम पढ़ाव हरियाली कांठा के लिए निकलती है और सुबह सूर्योदय की पहली किरण के साथ हरियाली कांठा मंदिर में पहुँचती है।
यहाँ पहुँचने के बाद माँ हरियाली देवी पुजारी पर अवतरित होती है और सभी भक्तगणों को अपना आशीर्वाद देती है। कुछ समय बाद देवी की डोली के साथ सभी श्रद्धालु जसोली के लिए प्रस्थान करते हैं।
हरियाली कांठा यात्रा के नियम (Hariyali Kantha Yatra Rules)
हरियाली देवी यात्रा (Hariyali Kantha Yatra) में भाग लेने के लिए कुछ कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है, इन नियमों का पालन किये बिना आप यात्रा में शामिल नहीं हो सकते हैं।
- यात्रा शुरू होने से लगभग एक सप्ताह पहले मांस, मदिरा, प्याज, लहसुन आदि का पूरी तरह से त्याग करना होता है, और सात्विक भोजन ही करना होगा।
- 10 km की इस यात्रा को नंगे पाँव ही करना पड़ता है, अगर आप नंगे पैर चलने में समर्थ हैं तो ही यात्रा में शामिल होयें।
- यात्रा में शामिल यात्रियों के लिए कम्बल और बर्तन इत्यादि की पूरी व्यवस्था रहती है।
- हरियाली कांठा यात्रा (Hariyali Kantha Yatra) में केवल पुरुष ही भाग लेते हैं, महिलाओं इसमें शामिल नहीं हो सकती हैं।
हरियाली देवी मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय (Best Time To Visit Hariyali Devi Temple)
यह मंदिर सभी श्रद्धालुओं के लिए वर्षभर खुला रहता है, आप किसी भी समय हरियाली देवी मंदिर जाकर माँ हरियाली देवी के दर्शन कर सकते हैं। यदि हरियाली देवी मंदिर (Hariyali Devi Mandir) जाने के सबसे अच्छे समय की बात करें तो आपको धनतेरस के दिन हरियाली कांठा यात्रा में शामिल होना चाहिए। यह माता के भक्तों के लिए माता के दर्शन करने का सबसे अच्छा समय होगा।
मानसून से समय उत्तराखंड में कहीं भी यात्रा करने की योजना न बनाएं। मानसून से समय यहाँ की सडकों की स्थिति बहुत बुरी हो जाती है और कभी भी भूस्खलन, बादल फटना, बाढ़ आना और पहाड़ टूटना जैसी अनेक घटनाएं हो सकती हैं।
हरियाली देवी मंदिर कैसे पहुंचें (How To Reach Hariyali Devi Temple)
हरियाली देवी (Hariyali Devi Temple) पहुंचना बहुत ही आसान है यहाँ हम आपको फ्लाइट, ट्रेन और बस के हरियाली देवी कैसे जायें के बारे में विस्तृत जानकारी देने वाले हैं।
हरियाली देवी मंदिर फ्लाइट से (Hariyali Devi Temple Uttarakhand By Flight)
अगर आप फ्लाइट से उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में आना चाहते हैं और यहाँ घूमना चाहते हैं तो आपको ये जानकर निराशा होगी कि आप केवल देहरादून स्थित जॉलीग्रांट एअरपोर्ट (170 km) तक ही फ्लाइट में आ सकते हैं। यह एअरपोर्ट दिल्ली से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। यहाँ से जॉलीग्रांट एअरपोर्ट के लिए आपको फ्लाइट आसानी से उपलब्ध हो जाती है। यहाँ से आगे का सफ़र आप बस, टैक्सी और कार से कर सकते हैं।
हरियाली देवी मंदिर ट्रेन से (Hariyali Devi Temple Uttarakhand By Train)
ट्रेन से यात्रा करना सबसे सही और सस्ता रहता है, अधिकांश लोग ट्रेन से सफ़र करने में सहज महसूस करते हैं। उत्तराखंड में हरियाली देवी मंदिर पहुँचने के लिए आपको नजदीकी रेलवे स्टेशन ऋषिकेश (लगभग 153 km) पहुंचना होता है। यहाँ से आगे ट्रेन नहीं जाती हैं, आगे की यात्रा बस, टैक्सी या कार से ही करनी होती है। ऋषिकेश-हरिद्वार में आपको रुद्रप्रयाग के लिए बहुत सारी बसें मिल जाती हैं।
हरियाली देवी मंदिर बस से (Hariyali Devi Temple Rudraprayag By Bus)
उत्तराखंड आने वाले अधिकांश यात्री बस से ही यात्रा करते हैं, बस में यात्रा करना अन्य यातायात माध्यमों की तुलना में सस्ता और सुलभ होता है। हरियाली देवी मंदिर (Hariyali Devi Temple Rudraprayag) के लिए ऋषिकेश या हरिद्वार से बस (Bus) आसानी से मिल जाती हैं। हरियाली देवी मंदिर पहुँचने के लिए आपको हरिद्वार-ऋषिकेश-तीन धारा-देवप्रयाग-श्रीनगर-धारी देवी– हरियाली देवी मंदिर आदि मुख्य पड़ावों से होकर आना पड़ता है।
विभिन्न स्थानों से रुद्रप्रयाग की दूरी(Rudraprayag Distance From Different Places)
स्थान | दूरी (किलोमीटर) |
---|---|
दिल्ली (Delhi To Rudraprayag Distance) | 365 km |
हरिद्वार (Haridwar To Rudraprayag Distance) | 165 km |
ऋषिकेश (Rishikesh To Rudraprayag Distance) | 145 km |
श्रीनगर (Shrinagar To Rudraprayag Distance) | 35 km |
धारी देवी मंदिर (Dhari devi temple to Rudraprayag distance) | 20 km |
रुद्रप्रयाग ( Rudraprayag To Hariyali devi Distance) | 37 km |
कार्तिक स्वामी (Kartik Swami To Rudraprayag Distance) | 35-40 km |
तुंगनाथ, चोपता (Tungnath, Chopta To Rudraprayag Distance) | 70 km |
त्रियुगीनारायण, केदारनाथ (Kedarnath To Rudraprayag Distance) | 80 km |
बद्रीनाथ (Badrinath To Rudraprayag Distance) | 152 km |
हरियाली देवी मंदिर लोकेशन (Hariyali Devi Temple location)
हरियाली देवी मंदिर (Hariyali Devi Temple) उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में मेन मार्केट से 37 km दूर जसोली गाँव में स्थित है, हरियाली मंदिर, रुद्रप्रयाग पहुँचने के लिए बद्रीनाथ मार्ग पर नग्रासु से 22 km का अलग रूट जाता है।
हरियाली देवी मंदिर दर्शन समय(Hariyali Devi Temple Darshan Timings)
हरियाली देवी मंदिर (Hariyali Devi Temple) रुद्रप्रयाग सभी भक्तों के लिए वर्षभर खुला रहता है, मंदिर सुबह 6 बजे से शाम को 7 बजे तक दर्शन के लिए खुला रहता है।
हरियाली देवी मंदिर आरती और पूजा(Hariyali Devi Temple Aarti-Puja)
हरियाली देवी मंदिर रुद्रप्रयाग (Hariyali Devi Mandir) में पूजा-पाठ की शुरुआत सुबह की आरती से होती है, फिर यहाँ पूरे दिन भर अलग-अलग जगह से श्रद्धालु पूजा करवाते हैं और अपनी मनोकामना लेकर माँ हरियाली देवी के मंदिर पहुँचते हैं।
हरियाली देवी मंदिर ट्रेक (Hariyali Devi Temple trek)
जसोली गाँव से हरियाली कांठा (Hariyali Kantha Yatra) मंदिर पहुँचने के लिए लगभग 8-10 km का ट्रेक करना पड़ता है।
हरियाली देवी मंदिर ऊँचाई (Hariyali Devi temple Height)
हरियाली देवी मंदिर समुद्रतल से लगभग 1400 मीटर ऊँचाई पर है।
हरियाली देवी मंदिर फोटोज (Hariyali Devi Temple photos)
हरियाली देवी मंदिर फेस्टिवल (Hariyali Devi Mandir festival)
जसोली गाँव से जन्माष्टमी के त्यौहार को बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है और इस दिन हरियाली देवी मंदिर रुद्रप्रयाग (Hariyali Devi Mandir) में हरियाली बोई जाती है। इस हरियाली को नवमी के दिन काटा जाता है और सभी भक्तों में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। जन्माष्टमी के अतिरिक्त धनतेरस और रक्षाबंधन के दिन भी मंदिर में मेला लगता है और जसोली गाँव से हरियाली कांठा (Hariyali Kantha Yatra) के लिए यात्रा निकाली जाती है। यह यात्रा 8-10 km की होती है।
हरियाली देवी मंदिर के आस-पास पर्यटक स्थल (Hariyali Devi Mandir nearby attractions/Temple)
- त्रियुगीनारायण मंदिर: शिव-पार्वती विवाह स्थल
- ओम्कारेश्वर मंदिर: केदारनाथ शीतकालीन गद्दी
- कार्तिक स्वामी मंदिर: उत्तर भारत में कुमार कार्तिकेय का एकमात्र मंदिर
- कालीमठ मंदिर रुद्रप्रयाग
- कोटेश्वर महादेव मंदिर: जहाँ एक दैत्य से डर कर महादेव छिपे थे इस गुफा में
रुद्रप्रयाग में कहाँ रहें? (Hotel In Rudraprayag In Hindi)
अगर आप हरियाली देवी मंदिर रुद्रप्रयाग (Hariyali Devi Temple Rudraprayag) में आने की योजना बना रहे हैं तो आप होटल की चिंता करना छोड़ दीजिये। आपको नग्रासु या रुद्रप्रयाग में बहुत सारे होटल मिल जाते है। आप अपने बजट के हिसाब से होटल का चुनाव कर सकते है।
FAQs
Q- हरियाली देवी मंदिर कहाँ स्थित है?
Ans- हरियाली देवी मंदिर (Hariyali Devi Mandir) उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में जसोली गाँव में स्थित है।
Q- हरियाली कांठा यात्रा क्या है?
Ans- हरियाली कांठा यात्रा (Hariyali Kantha Yatra) रुद्रप्रयाग के जसोली गाँव में स्थित हरियाली मंदिर से हरियाली कांठा पर्वत के लिए निकलती है, मान्यता है कि सबसे पहले इसी स्थान पर माँ हरियाली प्रकट हुई थी। हर साल यह यात्रा दिवाली से पहले धनतेरस के दिन आयोजित की जाती है और इस समय मंदिर में 2 दिन का मेला लगता है ।
Q- हरियाली कांठा यात्रा रुद्रप्रयाग कब आयोजित की जाती है?
Ans- यह यात्रा हर साल धनतेरस के दिन आयोजित होती है और इस समय मंदिर में दो दिनो का भव्य मेला लगता है जिसमे शामिल होने के लिए देशभर से श्रद्धालु पहुँचते हैं।
Q- हरियाली देवी कांठा यात्रा रुद्रप्रयाग कितने किलोमीटर की होती है?
Ans- हरियाली देवी मंदिर रुद्रप्रयाग (Hariyali Devi Mandir) से हर साल हरियाली कांठा यात्रा आयोजित की जाती है, यह यात्रा जसोली गाँव से लगभग 8-10 km की दूरी तय करने के बाद हरियाली कांठा पर्वत पहुँचती है।